शाम ४-८ बजे के बीच डकारें आना और मीठे की इच्छा लिवर रोग के संकेत
इस अंग की समस्या कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने, पाचन तंत्र में किसी प्रकार की रुकावट आने, असंतुलित आहार या अत्यधिक शराब के सेवन से होती है। जानते हैं लिवर से जुड़े रोगों के लक्षण व होम्योपैथी उपचार के बारे में।
जब व्यक्ति को गॉलब्लैडर में स्टोन व शराब का अत्यधिक सेवन करने से पेटदर्द और सूजन होती है तो कार्डस मार दवा दी जाती है। दांएं कंधे के नीचे दर्द, एसिडिटी या गर्म पेय या खाद्य पदार्थ खाने की इच्छा होने पर चिलीडोनियम दवा से आराम मिलता है। भूख सहन न होना, पेट फूलना लेकिन दर्द न हो और जीभ का रंग सफेद दिखे तो एंटिमकू्रड दवा दी जाती है।
वसा के कारण लिवर में बदलाव होने पर इसमें रेशे (फाइब्रोसिस) बनने लगते हैं जिससे लिवर में लचीलापन खत्म होकर कठोरता आ जाती है। फाइब्रोसिस को नेट्रम क्लोर दवा से गलाते हैं। मर्क डल्सिस दवा से शरीर में अत्यधिक सूजन, मल में रक्त, म्यूकस और तरल आने की समस्या को दूर किया जाता है।
भोजन करने के तुरंत बाद पेट फूलना, दर्द, एसिडिटी और जलन के साथ डकारें आना खासकर शाम ४-८ बजे के बीच और मीठा खाने की इच्छा होने जैसे लक्षणों में लाइकोपोडियम दवा देकर इलाज किया जाता है।
लिवर की समस्या के कारण यदि महिलाओं को माहवारी में रुकावट, आंतों में जकडऩ व मरोड़ या डायबिटीज की समस्या हो तो चियोनेंथस दवा दी जाती है। यदि नवजात शिशु को पैदा होते ही पीलिया की शिकायत हो या बड़े व्यक्तियों को पसीना, अत्यधिक नींद आना, पेशाब में जलन, मांसपेशियों में खिंचाव, त्वचा पर छोटी-छोटी फुंसियां दिखने लगे तो ल्यूपूलस दवा का प्रयोग किया जाता है।
टेपवॉर्म नामक परजीवी के अंडे जब दूषित भोजन या पानी के द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं तो यह लिवर में जाकर खत्म हो जाते हैं और हाइडेटिड सिस्ट के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इससे पेटदर्द, भूख न लगना, अपच और पीलिया जैसे लक्षण हो जाते हैं। जिसके लिए नेट्रम आयोड औषधि से इन गांठों को गलाया जाता है।
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